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माँ सरस्वती की पूजा के दिन बच्चे को पढना चाहिए या नहीं

हिन्दू धर्म के अंदर संस्कार सर्वोपरि हैं।  और इसकी शुरुआत बचपन में ही हमारे घरों से हो जाती है।  जब घर में कोई भी बच्चा जन्म लेता है और कुछ दिनों बाद, जब वह लोगों को पहचानने की कोशिश करने लगता है। तभी घर के बुजुर्ग और अन्य सदस्य उसे 'नमस्ते ' करने को और 'राधे-राधे' बोलना सीखाना शुरू कर देते हैं।  और सही मायने में उस नवजात बच्चे का धर्म के प्रति रुझान शुरू हो जाता है।  फिर जैसे - जैसे वह बड़ा होता जाता है उसे अपने बुजुर्गों द्वारा पढ़ाया गया आदर और सम्मान का भाव याद आने लगता है।उसको बताया जाता है कि इन अंकल से नमस्ते करनी और पिता जी के पैर छूने हैं। अगली और मुख्य सीढ़ी विद्यालय होता है।  हालाँकि आज के समय के विद्यालयों में सरस्वती पूजा होना तो बहुत ही दूर की बात है।  उन्हें माँ सरस्वती के बारे में बताया भी नहीं जाता।  आजकल का समय विद्यालयों में सिर्फ किताबी कीड़ा बनाने और पाश्चात्य सभ्यता को सीखने पर जोर दिया जाता है। बच्चों के दिमाग में संस्कार, आदर और सम्मान का अलग ही मतलब फिट किया जाता है।   आखिर माँ सरस्वती कौन हैं ? भारतीय परंपरा अर्थात हिन्दू धर्म में ज्ञान, विद्या